श्री अभिनव महावीर धाम

(संचालक: श्री वर्धमान जैन बोर्डिंग हाऊस-छात्रावास, सुमेरपुर)

राजस्थान के पाली व सिरोही जिला की सरहद पर बसा सुमेरपुर नगर में राष्ट्रीय राज मार्ग नं. 14 पर स्थित श्री वर्धमान जैन बोर्डिंग हाऊस (छात्रावास) के परिसर में निर्मित जैन धर्म के विश्व कल्याणकारी सिद्धांतो को जन-जन तक पहुँचाने वाला विराट ज्ञान तीर्थ...

प्रेरक :

परम पूज्य 381 दीक्षा दानेश्वरी परम शासन प्रभावक आचार्य देव श्री वि.गुणरत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब व युवा प्रवचनकार आचार्य देव श्री वि.रश्मिरत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब।

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प्रेरक :

परम पूज्य 324 दीक्षा दानेश्वरी परम शासन प्रभावक आचार्य देव श्री वि.गुणरत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब व युवा प्रवचनकार आचार्य देव श्री वि.रश्मिरत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब।

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समाचार

संपूर्ण वातानुकुलित भव्य नूतन अतिथी गृह का निमार्ण

आलीषान भव्य गौरवषाली नया संपूर्ण वातानुकुलित तीन मंजिला बॅन्कवेट हाॅल (5000Sqft.) अतिथीगृह का निमार्ण
अत्याधुनिक सुविधाओ युक्त यह अतिथिगृह विभिन्न सामाजीक एवं धार्मिक कायों के लिए बहुत उपयोगी होगा।
शीघ्र ही यह भवन समाल की सेवा में समर्पित होगा। इस अतिथि भवन मे निम्न योजनाओ
में आप लाभ लेकर इस महान ऐतिहासक सुकृत के भागीदार बने।

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गेलरी

इतिहास
भूमिका

जैन धर्म के प्रचारक इस अवसर्पिणी में 24 तीर्थंकर हो गये है। इनकी वाणियां हमें अब प्राप्त नहीं है इसलिए उनके समय में जातिवाद की मान्यता किस रुप में थी। जातिया एवं गोत्रों का विकास कब- कब और किन-किन कारणों से हुआ इसको जानने के लिए तत्कालीन कोई साधन नहीं है। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर की वाणी जैनागमों में संकलित की गई जो आज उपलब्ध है। उसमें हमें जैन धर्म और भगवान महावीर के जाति और वर्ण के संबंध में क्या विचार थे और उस जमाने में कुलों और गोत्रों का कितना महत्व था, कौन कौन से कुल एवं गौत्र प्रसिद्ध थे इन सब बातों की जानकारी मिल जाती है।

भगवान महावीर के पूर्व केवल दो संस्थाए ही भारत में रही है। एक धर्म संस्था और दूसरी वर्ण संस्था। आज की जातियों का जाल, श्रेणियों का दुर्भेद उस समय नितांत ही नहीं था। वर्ण व्यवस्था आज भी है और उसके अनुसार पूर्ववत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चारों वर्ण भी विद्यमान है , परन्तु आज ये जातियों के रुप में है, जबकि उस समय पुरुष का वर्ण उसके कर्म के अधीन था।

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महान कार्य

श्री अभिनव महावीर धाम उद्देश्य

भोगवाद और भौतिकवाद की चकाचौध में आज का मानव व्यस्त होने के बावजूद उसे सुख का कहीं अता-पता नजर नहीं आ रहा है। मनुष्य लाख कौशिश के बावजूद स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है। जीवन में व्याप्त लक्ष्यहीन दिशाविहीन दशा उसे संतप्त कर रही है। विज्ञान के विमान को उडने व उतरने के लिये विमानतल की आवश्यकता होती है, वैसे मानव को जन्म से मोक्ष प्राप्ति के लिये धर्म की धरा अत्यधिक जरुरी है। विश्व के मानचित्र पर अनंतानंत तीर्थारकों ने मात्र मानव द्वारा ही विश्व के तमाम छोटे बडे जीवों का कल्याण करने के लिये अहिंसा, संयम और तप धर्म को प्रकाशित किया। चौबिसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने शासन स्थापना कर आचार में अहिंसा, विचार में अनेकांत और व्यवहार में कर्मवाद का सिद्धांत दिया। जीवन रूपी बांस को बांसुरी का रुप देकर विश्वमैत्री का नाद फैलाया।
हिंसा की पाशवी लीला से संतप्त आज के वैश्विक मानव को अहिंसा व शांति के दूत का इंतजार था जो प्रभु महावीर के अवतरण से प्राप्त हुआ। "वर्तमान को वर्धमान की जरुरत है।"

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